Mansarovar part 1 by Munshi Premchand

Sept. 7, 2023 by shrikant patel Posted in education Category 0 Comments 240 Views

Mansarovar part 1 by Munshi Premchand

 "Mansarovar" Part-1 by Munshi Premchand details and PDF

भारत के सबसे प्रसिद्ध साहित्यकारों में से एक, मुंशी प्रेमचंद, अपने विचार-परेशान और सामाजिक रूप से लागू लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी रचनाएँ मानवीय भावनाओं, सामाजिक परेशानियों और रोजमर्रा के लोगों के संघर्षों की गहराई को उजागर करती हैं। उनके महान साहित्यिक योगदानों में से, "मानसरोवर" भाग 1 एक सम्मोहक कथा के रूप में सामने आता है जो सामूहिक रूप से विस्तृत पात्रों को बुनता है और मानवीय रिश्तों की जटिलताओं की पड़ताल करता है। इस ब्लॉग में, हम "मानसरोवर" नामक साहित्यिक कृति की खोज के लिए एक यात्रा शुरू करने में सक्षम हैं।

 

लेखक: मुंशी प्रेमचंद

इससे पहले कि हम किताब में उतरें, हमें लेखक मुंशी प्रेमचंद को समझने में एक सेकंड का समय लगेगा। 31 जुलाई, 1880 को धनपत राय श्रीवास्तव के रूप में जन्मे प्रेमचंद की जीवन समीक्षा के साथ-साथ आम आदमी के प्रति उनकी गहरी सहानुभूति ने उनकी कहानी कहने की कला को समृद्ध किया। उन्होंने अपने समय की तात्कालिक परेशानियों से निपटने के लिए अपनी कलम का इस्तेमाल किया, जिसमें गरीबी, भेदभाव और हाशिये पर पड़े लोगों के संघर्ष शामिल थे।

"मानसरोवर" भाग-1 में, मुंशी प्रेमचंद पाठकों को एक आकर्षक कथा देते हैं जो न केवल मनोरंजन करती है बल्कि मानव मानस और उस समय के सामाजिक मानदंडों की गहराई से पड़ताल भी करती है। सही ढंग से चित्रित पात्रों और जटिल कहानी कहने के माध्यम से, प्रेमचंद जीवनशैली और आधुनिकता के बीच फंसे व्यक्तियों द्वारा सामना की जाने वाली दुविधाओं की एक झलक प्रस्तुत करते हैं। जैसे ही हम इस साहित्यिक रत्न की खोज पूरी करते हैं, हम प्रेमचंद की कहानी कहने की स्थायी प्रासंगिकता और ताकत की गहरी सराहना करते हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी पाठकों के मन में गूंजती रहती है।

मुंशी प्रेमचन्द के द्वारा लिखी गई पुस्तक मानसरोवर में से आपको एक बहुत ही अच्छी कहानी आपको प्रस्तुत की जा रही है जिसका नाम ठाकुर का कुआं नाम हैं। यदि आप पूरी पुस्तक पढ़ना चाहते हैं तो आप मानसरोवर पुस्तक का भाग एक डाउनलोड कर सकते हैं|

 

ठाकुर का कुआं

जोखू ने लोटा मुंह से लगाया तो पानी में सख्त बदबू आई। गंगी से बोला-यह कैसा पानी है ? मारे बास के पिया नहीं जाता। गला सूखा जा रहा है और तू सडा पानी पिलाए देती है | गंगी प्रतिदिन शाम पानी भर लिया करती थी। कुआं दूर था, बार-बार जाना मुश्किल था। कल वह पानी लायी, तो उसमें बू बिलकुल न थी, आज पानी में बदबू कैसी ! लोटा नाक से लगाया, तो सचमुच बदबू थी। जरुर कोई जानवर कुएं में गिरकर मर गया होगा, मगर दूसरा पानी आवे कहां से?

ठाकुर के कुंए पर कौन चढ़नें देगा ? दूर से लोग डॉट बताएँगे। साहू का कुआँ गाँव के उस सिरे पर है, परन्तु वहाँ कौन पानी भरने देगा ? कोई कुआँ गाँव में नहीं है। 

जोखू कई दिन से बीमार हैं। कुछ देर तक तो प्यास रोके चुप पड़ा रहा, फिर बोला-अब तो मारे प्यास के रहा नहीं जाता। ला, थोड़ा पानी नाक बंद करके पी लूं। गंगी ने पानी न दिया। खराब पानी से बीमारी बढ़ जाएगी इतना जानती थी, परंतु यह न जानती थी कि पानी को उबाल देने से उसकी खराबी जाती रहती हैं। बोली-यह पानी कैसे पियोंगे ? न जाने कौन जानवर मरा हैं। कुएँ से मैं दूसरा पानी लाए देती हूँ। जोखू ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा-पानी कहाँ से लाएगी ? ठाकुर और साहू के दो कुएँ तो हैं। क्यो एक लोटा पानी न भरन देंगे?

'हाथ-पांव तुड़वां आएगी और कुछ न होगा। बैठ चुपके से। ब्राहम्ण देवता आशीर्वाद देंगे, ठाकुर लाठी मारेगें, साहूजी एक पांच लेगें। गराबी का दर्द कौ  समझता हैं ! हम तो मर भी जाते है, तो कोई दुआर पर झाँकनें नहीं आता, कंधा देना तो बड़ी बात है। ऐसे लोग कुएँ से पानी भरने देंगें ?' इन शब्दों में कड़वा सत्य था। गंगी क्या जवाब देती, किन्तु उसने वह बदबूदार पानी पीने को न दिया।

रात के नौ बजे थे। थके-मॉदे मजदूर तो सो चुके थें, ठाकुर के दरवाजे पर दस- पाँच बेफिक्रे जमा थें मैदान में। बहादुरी का तो न जमाना रहा है, न मौका। कानूनी बहादुरी की बातें हो रही थीं। कितनी होशियारी से ठाकुर ने थानेदार को एक खास मुकदमे की नकल ले आए। नाजिर और मोहतिमिम, सभी कहते थें, नकल नहीं मिल सकती। कोई पचास माँगता, कोई सौ । यहाँ बे-पैसे-कौड़ी नकल उड़ा दी। काम करने ढ़ग चाहिए।

इसी समय गंगी कुएँ से पानी लेने पहुँची।

कुप्पी की धुँधली रोशनी कुएँ पर आ रही थी। गंगी जगत की आड़ मे बैठी मौके का इंतजार करने लगी। इस कुँए का पानी सारा गाँव पीता हैं। किसी के लिए रोका नहीं, सिर्फ ये बदनसीब नहीं भर सकते |

गंगी का विद्रोही दिल रिवाजी पाबंदियों और मजबूरियों पर चोटें करने लगा-हम क्यों नीच हैं और ये लोग क्यों ऊचें हैं ? इसलिए किये लोग गले में तागा डाल लेते हैं ? यहाँ तो जितने है, एक-से-एक घंटे हैं। चोरी ये करें, जाल-फरेब ये करें, झूठे मुकदमे ये करें। अभी इस ठाकुर ने तो उस दिन बेचारे गड़रिए की भेड़ चुरा • ली थी और बाद मे मारकर खा गया। इन्हीं पंडित के घर में तो बारहों मास जुआ होता है। यही साहू जी तो घी में तेल मिलाकर बेचते है। काम करा लेते हैं, मजूरी देते नानी मरती है। किस-किस बात मे हमसे ऊँचे हैं, हम गली-गली चिल्लाते नहीं कि हम ऊँचे है, हम ऊँचे। कभी गाँव में आ जाती हूँ, तो रस-भरी  आँख से देखने लगते हैं। जैसे सबकी छाती पर सॉप लोटने लगता है, परंतु घमंड यह कि हम ऊँचे हैं!

कुएँ पर किसी के आने की आहट हुई। गंगी की छाती धक-धक करने लगी। कहीं देख ले तो गजब हो जाए। एक लात भी तो नीचे न पड़े। उसाने घड़ा और रस्सी उठा ली और झुककर चलती हुई एक वृक्ष के अँधरे साए मे जा खड़ी हुई। कब इन लोगों को दया आती है किसी पर ! बेचारे महगू को इतना मारा कि महीनो लहू थूकता रहा। इसीलिए तो कि उसने बेगार न दी थी। इस पर ये लोग ऊँचे बनते हैं ?

कुएँ पर स्त्रियाँ पानी भरने आयी थी। इनमें बात हो रही थीं।

'खान खाने चले और हुक्म हुआ कि ताजा पानी भर लाओं। घड़े के लिए पैसे नहीं है।'

हम लोगों को आराम से बैठे देखकर जैसे मरदों को जलन होती हैं। हाँ, यह तो न हुआ कि कलसिया उठाकर भर लाते। बस, हुकुम चला दिया कि ताजा पानी लाओ, जैसे हम लौंडियाँ ही तो हैं। लौडिंयाँ नहीं तो और क्या हो तुम? रोटी-कपड़ा नहीं पातीं ? दस-पाँच रुपये भी छीन-झपटकर ले ही लेती हो। और लौडियाँ कैसी होती हैं | मत लजाओं, दीदी! छिन-भर आराम करने को ती तरसकर रह जाता है। इतना काम किसी दूसरे के घर कर देती, तो इससे कहीं आराम से रहती। ऊपर से वह एहसान मानता ! यहाँ काम करते-करते जाओं, पर किसी का मुँह ही सीधा नहीं होता।

दोनों पानी भरकर चली गई, तो गंगी वृक्ष की छाया से निकली और कुएँ की जगत के पास आयी। बेफिक्रे चले गए थें। ठाकुर भी दरवाजा बंदर कर अंदर  आँगन में सोने जा रहे थें। गंगी ने क्षणिक सुख की साँस ली। किसी तरह मैदान तो साफ हुआ। अमृत चुरा लाने के लिए जो राजकुमार किसी जमाने में गया था, वह भी शायद इतनी सावधानी के साथ और समझ-बूझकर न गया हो। गंगी दबे पाँव कुएँ की जगत पर चढ़ी, विजय का ऐसा अनुभव उसे पहले कभी न हुआ।

उसने रस्सी का फंदा घड़े में डाला। दाएँ-बाएँ चौकनी दृष्टी से देखा जैसे कोई सिपाही रात को शत्रु के किले में सूराख कर रहा हो। अगर इस समय वह पकड़ ली गई, तो उसके लिए माफी या रियायत की रत्ती भर उम्मीद नहीं। अंत मे देवताओं को याद करके उसने कलेजा मजबूत किया और घड़ा कुएँ में डाल दिया।

घड़े ने पानी में गोता लगाया, बहुत ही आहिस्ता । जरा-सी आवाज न हुई। गंगी ने दो-चार हाथ जल्दी-जल्दी मारे। घड़ा कुएँ के मुँह तक आ पहुँचा। कोई बड़ा शहजोर पहलवान भी इतनी तेजी से न खींसच सकता था।

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गंगी झुकी कि घड़े को पकड़कर जगत पर रखें कि एकाएक ठाकुर साहब का दरवाजा खुल गया। शेर का मुँह इससे अधिक भयानक न होगा। गंगी के हाथ रस्सी छूट गई। रस्सी के साथ घड़ा धड़ाम से पानी गिरा और कई क्षण तक पानी में हिलकोरे की आवाजें सुनाई देती रहीं।

ठाकुर कौन है, कौन है ? पुकारते हुए कुएँ की तरफ जा रहे थे और गंगी जगत से कूदकर भागी जा रही थी।

घर पहुँचकर देखा कि लोटा मुंह से लगाए वही मैला गंदा पानी रहा है।

 

निष्कर्ष 

इस लेख में आपने मुंशी प्रेमचन्द के द्वारा लिखी गए एक बेहतरीन कहानी के बोर में जाना जिसका नाम ठाकुर का कुआँ है तथा  साथ ही आप मानसरोवर पुस्तक के पहले भाग को भी download करके पूरा पढ़ सकते है |

 

मुंशी प्रेमचन्द जी के विषय से जुड़े कुछ प्रश्न

प्रश्न 1 : मुंशी प्रेमचन्द की अन्य किताबों के नाम क्या हैं।

उत्तर : प्रेमचन्द के द्वारा लिखी गई कुछ महत्वपूर्ण किताबों के नाम हैं -  सेवासदन,  प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, प्रतिज्ञा, गबन, कर्मभूमि, गोदान, मंगलसूत्र |

प्रश्न 2 : मुंशी प्रेमचन्द का जन्म कब और कहां हुआ था ?

उत्तर : प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम मुंशी अजायबराय था जो लमही में डाकमुंशी थे। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था।

प्रश्न 3 : मानसरोवर के कितने भाग है?

उत्तर : मानसरोवर नामक पुस्तक के कुल मिला कर 8 भाग है।

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